इंद्रप्रस्थ अध्ययन केंद्र प्रत्येक वर्ष भारत मंथन संगोष्ठी का आयोजन करता आया है। इसी श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए, इस वर्ष 20 अप्रैल 2024 को ‘वर्तमान में उभरते भारत की चुनौतियां एवं समाधान’ विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन संपन्न हुआ। इंद्रप्रस्थ अध्ययन केंद्र (दिल्ली), एन सी वेब (दिल्ली विश्वविद्यालय), संस्कृत एवं प्राच्य विद्या अध्ययन (जेएनयू), हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय (धर्मशाला), चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय (मेरठ) के संयुक्त तत्वाधान में विश्वविद्यालय के सम्मेलन केंद्र में आयोजित किया गया।
संगोष्ठी के प्रथम सत्र में प्रो. योगेश सिंह (कुलपति दिल्ली विश्वविद्यालय), प्रो. धनंजय जोशी (कुलपति दिल्ली शिक्षक विश्वविद्यालय नई दिल्ली), माननीय अजेय कुमार (बौद्धिक शिक्षण प्रमुख उत्तर क्षेत्र रा स्व सं), प्रो. बलराम पाणी (अधिष्ठाता महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय), प्रो. गीता भट्ट (निर्देशक, एनसी वेब दिल्ली विश्वविद्यालय) की विशिष्ट उपस्थिति रही। समापन सत्र में प्रो. प्रतीक शर्मा (कुलपति दिल्ली प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय), डॉ. अनिल अग्रवाल (प्रांत संघ चालक दिल्ली), माननीय नंदकुमार (संयोजक, प्रज्ञा प्रवाह रा स्व सं), प्रो. सत प्रकाश बंसल (कुलपति, हिमाचल प्रदेश, केंद्रीय विश्वविद्यालय), प्रो. बृजेश कुमार पांडे (संकाय अध्यक्ष, संस्कृत प्राच्य विद्या अध्ययन संस्थान, जेएनयू) की उपस्थिति रही।
संगोष्ठी का प्रारंभ सरस्वती वंदना और दीपक प्रज्वलन से हुआ। प्रो. योगेश सिंह ने बदलते भारत से विकसित भारत की यात्रा के विषय में बात की। उन्होंने कहा सरकार अपनी सार्थकता के साथ सीमाओं की सुरक्षा और गरीबी उन्मूलन के प्रयास में राष्ट्रीय विकास की ओर बढ़ रही है। भारत वैश्विक स्तर पर निरंतर उभर रहा है। प्रो. धनंजय जी ने कहा ‘ब्रेन ड्रेन को ब्रेन गेन’ में बदलना चाहिए। माननीय अजय जी ने संगोष्ठी के सार रूप में कहा कि भारत मंथन को शब्दों तक नहीं सिमटना चाहिए, हृदय तक भारत मंथन चलना चाहिए।
संगोष्ठी में दो समांतर सत्रों में लगभग 250 शोध पत्र पढ़े गए जिनमें विभिन्न शिक्षकों,शोधार्थियों, विद्यार्थियों एवं अन्य प्रबुद्ध जनों ने भाग लिया। प्रो. प्रतीक शर्मा ने अपने वक्तव्य में भारत को आत्मिक प्रकाश से युक्त बताया और कहा विश्व को अध्यात्म भारत ने दिया। माननीय सत्य प्रकाश बंसल जी ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2024 को भारत के लिए संजीवनी बूटी बताया और कहां शक्ति की अभिव्यक्ति राष्ट्र की स्वाभिमान को जाग्रत करती है। माननीय नंदकुमार जी ने देश की संस्कृति की रक्षा सबसे महत्वपूर्ण बताई और कहा संभावना से युक्त व्यक्ति जीत में हार और हार में जीत देखता है और सदा संघर्षरत रहता है। उन्होंने पंच परिवर्तन अर्थात मूल्य आधारित परिवार व्यवस्था, समरसता, स्वदेशी आधारित स्वालंबी समाज, पर्यावरण प्रेमी जीवन और कर्तव्यबोध युक्त नागरिक उभरते भारत की चुनौतियों का समाधान करने में समर्थ है। संगोष्ठी का समापन कल्याण मंत्र से हुआ।
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