नई दिल्ली: भारत में 25 जून 1975 को लगे आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर राजधानी के प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान दिल्ली विश्वविद्यालय में एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य न केवल उस काले अध्याय को याद करना था, बल्कि वर्तमान और आने वाले समय में लोकतंत्र की रक्षा के प्रति युवाओं में जागरूकता भी फैलाना था।
कार्यक्रम का आयोजन दिल्ली विश्वविद्यालय की मूल्य संवर्धन पाठ्यक्रम समिति द्वारा किया गया, जिसकी शुरुआत आपातकाल के दौरान बलिदान देने वाले हुतात्माओं को दो मिनट का मौन रखकर की गई। विश्वविद्यालय के प्रमुख शिक्षकों और छात्रों की उपस्थिति में आयोजित इस सभा में लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता का भाव स्पष्ट रूप से देखा गया।
आपातकाल: इतिहास का काला अध्याय
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रोफेसर बलराम पाणि ने आपातकाल को भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का “काला अध्याय” बताते हुए कहा कि यह स्मृति देश को सदैव सतर्क और जागरूक बनाए रखेगी। उन्होंने कहा कि यह समय था जब अभिव्यक्ति की आज़ादी, प्रेस की स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों को कुचला गया।
प्रोफेसर निरंजन कुमार ने आपातकाल की अवधि को याद करते हुए बताया कि उस समय नागरिकों के मूल अधिकार तक छीन लिए गए थे। उन्होंने कहा कि आपातकाल के विरोध में सबसे बड़ा जन आंदोलन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने किया था, जिसके हजारों स्वयंसेवक जेल गए। उन्होंने इसे वंशवाद और राजतांत्रिक मानसिकता की परिणति बताया और उपस्थित जनसमूह को लोकतंत्र विरोधी ताकतों से संघर्ष करने की शपथ दिलाई।
लोकतंत्र के स्तंभों पर आघात
दिल्ली विश्वविद्यालय विधि संकाय के प्रोफेसर अनुराग दीप ने आपातकाल को शक्तियों के दुरुपयोग का समय बताते हुए कहा कि यह वह दौर था जब लोकतंत्र के चारों स्तंभ – कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका और मीडिया – सभी ध्वस्त हो गए थे। उन्होंने कहा कि युवाओं को इस इतिहास से सबक लेना चाहिए और लोकतांत्रिक संस्थाओं की मजबूती के लिए सक्रिय रहना चाहिए।
हिंदी विभाग के डॉ. दीपक जायसवाल ने बताया कि आपातकाल के दौरान भी देश के साहित्यकारों ने विषम परिस्थितियों में लोकतंत्र के पक्ष में लेखन किया और जनचेतना को जीवित रखा।
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