ABVP अक्सर आपने स्कूल कॉलेज स्तर पर इसका नाम सुना होगा । छात्र हितों के लिए कार्य करने वाले सामाजिक संगठन ABVP का राष्ट्रीय अधिवेशन दिल्ली के बुराड़ी में शुरू हो गया । आइए जानते हैं कौन था जम्मू & कश्मीर में ABVP को स्थापित करने वाला नौजवान .
साल 1947, जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा बना था और संघ ने अपना दायरा बढ़ाना शुरू कर दिया था. जम्मू-कश्मीर में इसके विस्तार की जिम्मेदारी 22 साल के एक नौजवान को दी गई है. नाम था बलराज मधोक. जम्मू का वो नौजवान 1942 में ही प्रचारक बन गया था. इतिहास के प्रोफेसर के तौर पर नौकरी शुरू की और कश्मीर को भारत में मिलाने का आंदोलन भी. 1947 में मधोक ने प्रजा परिषद पार्टी बनाई, लेकिन जवाहर लाल नेहरू ओर शेख अब्दुल्ला का समझौता हुआ और आर्टिकल 370 की बात मान ली गई.
1948 में मधोक दिल्ली आ गए. दिल्ली यूनिवर्सिटी के दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज में इतिहास के शिक्षक बन गए. उस दौर में ज्यादातर कॉलेज और यूनिवर्सिटीज में वामपंथ का दबदबा था. एक नई विचारधारा के साथ मधोक ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निर्देश पर 9 जुलाई, 1949 को एक छात्र संगठन की नींव रखी, जिसे नाम मिला ABVP यानी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद. बुराड़ी के डीडीए मैदान में ABVP के 69वे राष्ट्रीय अधिवेशन की तैयारियां पूरी हो गई हैं. शुक्रवार को गृहमंत्री अमित शाह यहां पहुंचेंगे.
ABVP का कैसे बढ़ा दायरा
50 के शुरुआती दशक में इस संगठन को विस्तार देने का लक्ष्य तय किया गया. इसके साथ ही सालाना कंवेंशन के जरिए एबीवीपी को आगे बढ़ाया गया. इसकी जिम्मेदारी संघ कार्यकर्ता यशवंत राव केलकर को दी गई. एबीवीपी की सबसे पहली यूनिट बॉम्बे में बनी और राव को संगठन का ऑर्गेनाइजर बनाया गया. महाराष्ट्र के बाद इसका दायरा बढ़ते हुए बिहार, मध्य प्रदेश और दूसरे राज्यों में पहुंचा. इसमें बड़ी भूमिका निभाई दत्ताजी दिदोलकर, मोरोपंत पिंगले से जैसे प्रचारकों ने.
वो आंदोलन जिसने एबीवीपी को स्थापित कर दिया
साल 1961 में गोवा मुक्ति का आंदोलन चल रहा था. इस आंदोलन में एबीवीपी के कार्यकर्ता भी शामिल थे. इस आंदोलन से एबीवीपी ने गहरी पैठ बनाई और 1970 में छात्र संघ चुनाव में पहली बार मैदान में उतरा. उत्तर प्रदेश से इसकी शुरुआत के बाद फिर दूसरे राज्यों में छात्रसंघ चुनाव का दायरा बढ़ता गया.
1974 में संगठन ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल के खिलाफ आंदोलन किया. इस आंदोलन ने एबीवीपी को प्रसिद्धी के नए स्तर तक पहुंचने में मदद की. गुजरात में चले छात्र आंदोलन का नेतृत्व एबीवीपी ने किया. आंदोलन का दायरा इतना बढ़ गया कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा. यह वो समय था, जब एबीवीपी लोगों के जेहन में अपनी तस्वीर दर्ज कर चुका था.
ऐसा ही एक आंदोलन बिहार में भी हुआ. 19 मार्च 1974 में आंदोलन हिंसक हुआ और 3 लोगों की मौत हो गई. छात्रों ने जय प्रकाश नारायण को आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए मनाया. वो मान गए और इंदिरा गांधी सरकार के विराेध और उनके नेतृत्व में छात्र सड़क पर उतरे. इन आंदोलनों ने एबीवीपी को वो ताकत दी, जिसने उसे इतिहास में अमर कर दिया.
साल दर साल बढ़ता गया रुतबा
करीब पांच तक चुनावी राजनीति से दूरी बनाने के दौरान संगठन बांग्लादेशी घुसपैठियों समेत कई तरह के मुद्दे उठाता रहा. 1982 तक एबीवीपी के पास देश के 790 कैम्पस में 1.50 से ज्यादा सदस्य जुड़ चुके थे. राम मंदिर आंदोलन में भी संगठन ने अपनी भूमिका निभाई. बोफोर्स मामले में वीपी सिंह की जनसभा में राजीव गांधी को घेरा. वीपी सिंह की मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू होने पर भी एबीवीपी सड़कों पर उतरा. वहीं, समय-समय पर कश्मीरी पंडितों के पलायन का मुद्दा भी उठाया.
अटल सरकार में बढ़ा वर्चस्व
अटल सरकार के दौरान संगठन का दायरा और तेजी से बढ़ता गया. सरकार का कार्यकल खत्म होने तक 2004 में एबीवीपी के पास सदस्यों की संख्या बढ़कर 11 लाख पहुंच चुकी थी. 2017 में 32 लाख सदस्य होने का दावा किया गया. इसके बाद संगठन ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. हालांकि, समय-समय पर कई विवादों में भी संगठन का नाम आया. इसमें जेएनयू जैसे नाम शामिल रहे.
यह भी जरूर पढ़े :