युवा संवादयुवा संवाद

दिल्ली विश्वविद्यालय, 01 दिसंबर 2025। दिल्ली विश्वविद्यालय में मूल्य संवर्धन पाठ्यक्रम समिति तथा ‘एकल फ्यूचर’ (यूथ विंग, एकल अभियान) के संयुक्त तत्वावधान में ‘युवा संवाद : शिक्षा से राष्ट्र निर्माण’ विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का सफलतापूर्वक आयोजन किया गया। कार्यक्रम कला संकाय के कक्ष संख्या 22 में हुआ, जिसकी शुरुआत पारंपरिक दीप प्रज्ज्वलन और विश्वविद्यालय कुलगीत के साथ हुआ।

इस संगोष्ठी का उद्देश्य युवाओं को राष्ट्र निर्माण में उनकी सक्रिय और निर्णायक भूमिका के प्रति जागरूक करना था। इसमें शिक्षा के विविध आयामों, भारतीय ज्ञान परंपरा और समकालीन चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा हुई। कार्यक्रम में देश के प्रतिष्ठित विद्वान, शिक्षाविद् और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।

स्वामी यतीन्द्रानंद गिरि का सान्निध्य और मुख्य अतिथियों की उपस्थिति

कार्यक्रम की गरिमा उस समय और बढ़ गई जब पूज्य स्वामी यतीन्द्रानंद गिरि जी ने अपने आशीर्वचन प्रदान किए। मुख्य अतिथि के रूप में भारत लोक शिक्षा परिषद् के ट्रस्ट बोर्ड अध्यक्ष श्री लक्ष्मी नारायण गोयल उपस्थित रहे। उनकी उपस्थिति ने कार्यक्रम को विशेष महत्व प्रदान किया।

एकल अभियान की कार्य गति और सामाजिक प्रभाव

एकल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री दुर्गेश त्रिपाठी ने अभियान के व्यापक कार्यों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि आज देश के 1,10,000 गाँवों में एकल विद्यालय संचालित हो रहे हैं, जहाँ 90 प्रतिशत महिलाएँ शिक्षण कार्य में सक्रिय रूप से जुड़ी हैं। उन्होंने संस्कार–आधारित शिक्षा के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि जातिगत बंधनों को समाप्त करके ही राष्ट्रीय एकता को मजबूत बनाया जा सकता है।

उन्होंने यह भी कहा कि ग्रामीण भारत की शिक्षा व्यवस्था में एकल विद्यालयों की भूमिका लगातार सशक्त हो रही है और ये विद्यालय सामाजिक परिवर्तन के वाहक बन रहे हैं।

भारतीय शिक्षा नीति और युवाओं की भूमिका पर विचार

मूल्य संवर्धन पाठ्यक्रम समिति के अध्यक्ष और डीन प्लानिंग प्रो. निरंजन ने युवाओं की शक्ति और राष्ट्र निर्माण में उनकी केंद्रीय भूमिका पर विचार व्यक्त किए। उन्होंने मैकाले की शिक्षा नीति के प्रभावों का विश्लेषण करते हुए कहा कि उसके बावजूद भारतीय युवाओं ने संस्कृति, परंपरा और आदर्शों को अपने भीतर संजोकर रखा है।

उन्होंने कहा कि आधुनिक शिक्षा पद्धति के साथ-साथ भारतीय ज्ञान परंपरा को भी शिक्षा में शामिल करने की आवश्यकता है, जिससे नई पीढ़ी में चरित्र निर्माण, नेतृत्व क्षमता और सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना विकसित हो सके।

सनातन परंपरा और राष्ट्रीय चेतना की महत्ता

मुख्य अतिथि श्री लक्ष्मी नारायण गोयल ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारत का हजारों वर्षों का इतिहास तभी गौरवपूर्ण रहा जब भारतीय समाज अपनी संस्कृति और परंपरा से जुड़ा रहा। उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक मूल्यों से विमुख होने के कारण भारत पर सदियों तक विदेशी शासन रहा।

उन्होंने एकल अभियान द्वारा राष्ट्र-जागरण में किए जा रहे कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि यह अभियान ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक व शैक्षिक परिवर्तन का मजबूत माध्यम बन रहा है।

स्वर्णिम भारत निर्माण की दिशा में युवाओं का आह्वान

समापन सत्र में पूज्य स्वामी यतीन्द्रानंद गिरि जी ने भारतीय गुरु–शिष्य परंपरा, वैदिक ज्ञान, तथा प्राचीन शिक्षा प्रणाली की प्रासंगिकता पर अपने विचार रखे।

उन्होंने कहा कि भारतीय शिक्षा पद्धति सदैव ज्ञान, आचरण, नैतिकता और समग्र विकास पर आधारित रही है। उन्होंने युवाओं का आह्वान किया कि वे भारतीय ज्ञान-परंपरा को पुनर्जीवित करें और स्वर्णिम भारत के निर्माण में सहभागी बनें।

राष्ट्रीय चेतना को मजबूत करने का संदेश

कार्यक्रम का समापन धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। संगोष्ठी ने युवाओं में राष्ट्रीय चेतना, सांस्कृतिक जागरूकता, और शिक्षा के माध्यम से राष्ट्र निर्माण की भावना को मजबूत करने का स्पष्ट संदेश दिया।

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