राजस्थान में लगातार दूसरी बार जीतकर ‘सत्ता में बदलाव’ के चलन से उबरने की कोशिश में जुटी कांग्रेस (Congress) को एक नए संकट का सामना करना पड़ रहा है. राज्य में 25 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस की चौथी और पांचवीं सूची मंगलवार को जारी हुई. इसके बाद पार्टी में अंदरूनी कलह उबरकर सतह पर आ गई है. राज्य के कुछ हिस्सों में उन कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किए हैं जो अपने नेताओं को टिकट नहीं दिए जाने से नाखुश हैं.
पार्टी के अंदर विरोध प्रदर्शन कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए एक बड़ा सिरदर्द बन रहा है. उन्होंने कहा है कि सभी को खुश रखना संभव नहीं है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा है कि जिन लोगों को टिकट से वंचित किया गया है उन्हें विभिन्न बोर्डों में मौका दिया जा सकता है.
कांग्रेस ने अब तक 200 विधानसभा सीटों में से 156 सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा की है. इसके बाद मंत्री शांति धारीवाल, महेश जोशी और पार्टी नेता धर्मेंद्र राठौड़ से जुड़े तीन महत्वपूर्ण मुद्दे सामने आए हैं. इन तीनों को पिछले साल कांग्रेस के अध्यक्ष के चुनाव से पहले उनके कथित विद्रोह के लिए केंद्रीय नेतृत्व ने कारण बताओ नोटिस जारी किया था.
उक्त चनाव के समय अशोक गहलोत पार्टी अध्यक्ष पद के प्रमुख दावेदारों में से एक बनकर उभरे थे. बाद में उनसे कहा गया था कि उन्हें ‘एक व्यक्ति-एक पद के सिद्धांत’ के तहत राजस्थान का मुख्यमंत्री पद छोड़ना होगा. इस पर उनके करीबी कम से कम 72 विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष को अपना इस्तीफा सौंप दिया था. विधायक सचिन पायलट को अगला मुख्यमंत्री बनाए जाने का विरोध कर रहे थे. इन विधायकों ने सरकार के खिलाफ पायलट के 2020 की बगावत का हवाला दिया था.
टिकट की संभावना?
जयपुर में कांग्रेस के राज्य मुख्यालय पर बुधवार को विरोध प्रदर्शन किया गया. यह विरोध प्रदर्शन हवामहल निर्वाचन क्षेत्र के मौजूदा विधायक महेश जोशी को टिकट दिए जाने को लेकर था, जबकि अभी तक उनकी उम्मीदवारी की घोषणा भी नहीं की गई है. आलाकमान के नोटिस और उनके बेटे पर बलात्कार का आरोप लगने के बाद इस बात के पुख्ता संकेत हैं कि टिकट पार्टी की जयपुर इकाई के अध्यक्ष आरआर तिवारी को मिल सकता है.
शांति धारीवाल को गहलोत का करीबी माना जाता है. बागी विधायकों ने 25 सितंबर, 2022 को कांग्रेस विधायक दल की बैठक में भाग लेने के बजाय धारीवाल के आवास पर एक बैठक की थी. धारीवाल ने कथित तौर पर यह भी कहा था कि गहलोत “असली हाईकमान” हैं. पिछले महीने कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में पार्टी की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने संभावितों की सूची में उनका नाम होने पर कथित तौर पर आपत्ति जताई थी और कथित तौर पर पूछा था कि क्या पार्टी के खिलाफ काम करने वालों को इस सूची में शामिल किया जा सकता है.
हालांकि सूत्रों ने एनडीटीवी को बताया है कि मुख्यमंत्री की नाराजगी से बचने के लिए धारीवाल को टिकट दिए जाने की बहुत अधिक संभावना है. लेकिन इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं है कि धर्मेंद्र राठौड़ चुनाव लड़ेंगे या नहीं.
कांग्रेस अब तक सुरक्षित खेल रही थी लेकिन मंगलवार को कुछ सीटों के लिए नामों की घोषणा के बाद विरोध शुरू हो गया है.
कांग्रेस 54 सीटों पर पिछले तीन चुनावों में कभी नहीं जीती
राजनीतिक रणनीतिकार अमिताभ तिवारी ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों को टिकट वितरण में समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन कांग्रेस के लिए यह मुद्दा बड़ा है क्योंकि वह पिछले तीन चुनाव में दो बार सरकार बनाने में 101 का साधारण बहुमत हासिल करने में कामयाब नहीं रही है.
तिवारी ने कहा कि, “कांग्रेस को राजस्थान में संरचनात्मक मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है… वहां 54 ऐसी सीटें हैं जो वह पिछले तीन चुनावों में कभी नहीं जीत सकी है. वास्तव में सरकार बनाने के लिए उसे 146 में से 101 सीटें जीतने की जरूरत है और यही कारण है कि वह कम पड़ रहे हैं. वे कभी 96 (सीटें) ), कभी-कभी 99 जीतते हैं. और वे हार जाते हैं क्योंकि उनके गढ़ की सीटें बहुत कम होती हैं. इसलिए बीजेपी की तुलना में कांग्रेस के लिए बगावत एक बड़ी समस्या है. बीजेपी एक ही चुनाव में केवल 19 निर्वाचन क्षेत्रों में कभी नहीं जीती है.”
2018 में गहलोत का साथ देने वाले 12 निर्दलियों को कांग्रेस का टिकट
सचिन पायलट-अशोक गहलोत के झगड़े का असर इस चुनाव में पहले से कम होता दिख रहा है. लेकिन पार्टी के पक्ष में जो काम कर रहा है वह है गहलोत का दबदबा और मजबूत राजनीतिक प्रवृत्ति. वे 2018 में 12 निर्दलीय उम्मीदवारों का समर्थन हासिल करने में कामयाब रहे थे, जिन्हें इस बार कांग्रेस का टिकट दिया गया है.
हालांकि पायलट ने कहा है कि पार्टी की जीत के बाद वे तय करेंगे कि मुख्यमंत्री कौन होगा. यह दर्शाता है कि उनसे भी कुछ वादा किया गया है.
तिवारी ने कहा कि बीजेपी के लिए मौजूदा विधायकों को हटाना और यहां तक कि मंत्रिमंडल के सदस्यों को बदलना आसान है जैसा कि उन्होंने गुजरात में किया था क्योंकि यह एक कैडर-आधारित पार्टी है जो एक विचारधारा से जुड़ी है.
कांग्रेस में बंटा हुआ पार्टी कैडर
उन्होंने कहा कि, “हालांकि कांग्रेस में किसी भी विधानसभा सीट पर कैडर शीर्ष चार से पांच नेताओं के बीच विभाजित होता है. इसलिए जब एक व्यक्ति को टिकट मिलता है, तो अन्य नेताओं के प्रति वफादार पार्टी कैडर चुप हो जाता है और आम तौर पर उनके लिए काम नहीं करता है.”
तिवारी ने कहा, “हम राजस्थान बीजेपी में भी विवाद के मुद्दे देख रहे हैं, लेकिन एक बार उम्मीदवार की घोषणा हो जाने के बाद, विचारधारा यह सुनिश्चित करती है कि बड़ी संख्या में कार्यकर्ता उसका समर्थन करें.”
विरोध प्रदर्शनों पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस ने कहा है कि यह आश्चर्य की बात नहीं है कि सत्ता में रहने वाली पार्टी में टिकट चाहने वाले और टिकट न मिलने पर नाराजगी के अधिक मामले देखने को मिल रहे हैं.
वरिष्ठ कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा, “टिकट एक प्रक्रिया के आधार पर, सर्वेक्षणों और परामर्शों के आधार पर तय किए जाते हैं और इसमें समय लगता है. इसमें समय लगना चाहिए. कुछ लोगों का निराश होना स्वाभाविक है. हम जीतने वाली पार्टी हैं, जरा देखिए कि हारने वाली पार्टी में कितनी लड़ाई हो रही है. जीतने वाली पार्टी में कुछ गुस्सा होना स्वाभाविक है.”
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