देश में जल्द ही लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। इसे लेकर सभी राजनीतिक पार्टियां तैयारियों में जुटी हुई हैं। साथ ही, चुनाव आयोग भी आम चुनाव की तैयारियों के लिए अलग-अलग राज्यों में दौरा कर रहा है। आगामी लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान जल्द ही चुनाव आयोग कर सकता है। ऐसे में आज हम आपके लिए लेकर आए हैं, चुनाव से जुड़ी एक खास जानकारी। ये केवल लोकसभा चुनाव के बारे में नहीं है। बल्कि इसका संबंध हर चुनाव से होता है। सबसे पहले अगर किसी व्यक्ति के मन में सवाल आता होगा कि आखिर ये मतदान केंद्र क्या होता है।
मतदान केंद्र क्या होता है
पोलिंग स्टेशन या मतदान केंद्र उस इमारत या जगह को कहते हैं,जहां पर वोट डालने की सुविधा उपलब्ध होती है। एक मतदान केंद्र में कई मतदान बूथ और पोलिंग बूथ हो सकते हैं। जहां वोटर अपना वोट डालते हैं उसे पोलिंग बूथ के नाम से जाना जाता है।
पोलिंग बूथ एक कमरे के अंदर छोटा सा कॉर्नर होता है। इस कोने में एक मेज पर ईवीएम मशीन या बैलेट पेपर के माध्यम से वोटर अपना वोट डालते हैं। इसे तीन तरफ से कवर करके रखा जाता है ताकि वोटर किस उम्मीदवार को वोट डाल रहा है ये केवल वोट देने वाले को ही पता रहे।
वोटर्स के घर से अधिकतम कितनी दूर हो सकता है मतदान केंद्र
पोलिंग स्टेशन को लेकर 1951 के जनप्रतिनिधित्व कानून में कई प्रावधान बनाए गए हैं। चुनाव आयोग भी आबादी में बदलाव होने के बाद टाइम-टू-टाइम नए दिशा निर्देश जारी करता रहता है। साल 2020 में बने नियमों के मुताबिक, 1,500 से ज्यादा वोटर्स पर एक पोलिंग स्टेशन होना चाहिए। वहीं, एक पोलिंग बूथ पर 1,000 से ज्यादा वोटर नहीं होने चाहिए। मतदान केंद्र को बनाते समय इस बात का ख्याल रखा जाता है कि किसी भी चुनाव क्षेत्र में वोटर को वोट डालने के लिए 2 किलोमीटर से ज्यादा की दूरी तय ना करनी पड़े।
इस तरह होता है मतदान केंद्र का चुनाव
अब बात की जाए कि चुनाव आयोग मतदान केंद्र का चुनाव कैसे करता है। इलेक्शन कमीशन लोगों के वोट डालने के लिए किसी सरकारी या अर्धसरकारी दफ्तरों की इमारत को चुनता है। इन इमारतों का चुनाव करते समय सुरक्षा-व्यवस्था का पूरा ध्यान रखा जाता है। स्कूल और कॉलेज में कुर्सी-टेबल की व्यवस्था पहले से ही होती है। इसलिए उन जगहों को ज्यादा तवज्जो दी जाती है। कई बार ग्रामीण समुदायिक भवन, पंचायत भवन या हॉल का उपयोग भी पोलिंग स्टेशन बनाने के लिए किया जाता है।
नियमों के मुताबिक, मंदिर, हॉस्पिटल, पुलिस स्टेशन जैसी जगहों पर पोलिंग स्टेशन बनाने की मनाही होती है। इन सभी के अलावा इनमें एक बात यह भी अहम होती है कि पोलिंग स्टेशन के 200 मीटर के दायरे में किसी भी राजनीतिक पार्टी का ऑफिस नहीं होना चाहिए। बुजुर्गों और दिव्याग लोगों के लिए लोगों को अलग से व्यवस्था करनी होती है। इन लोगों के लिए ग्राउंड फ्लोर पर ही मतदान केंद्र बनाया जाता है। वोटर्स की सुविधा के लिए सभी जगह रैंप की व्यवस्था अनिवार्य होती है।
मतदान केंद्र के चुनाव को लेकर डीएम लेते हैं फैसला
मतदान केंद्र को लेकर फैसला आमतौर पर जिला मजिस्ट्रेट या डीएम ही करते हैं। डीएम ही जिला निर्वाचन अधिकारी होते हैं। हालांकि, मतदान केंद्र को फाइनल करने से पहले चुनाव आयोग से इजाजत लेनी होती है। अगर ऐसा नहीं किया तो मतदान केंद्र को मान्यता नहीं दी जाती है। कई बार पहाड़ों और जंगलों में भी मतदान केंद्र बनाए जाते हैं ताकि वहां रहने वाले वोटर भी अपने मत का इस्तेमाल कर सकें।
चुनाव आयोग के अनुसार, साल 2019 के लोकसभा चुनाव में 10,37,848 मतदान केंद्र बनाए गए थे। यह वोटर्स के लिए सुबह सात बजे से खोल दिए जाते हैं। वोटिंग का समय अधिकतर शाम छह बजे तक होता है। मतदान का समय समाप्त होने के बाद भी जितने वोटर लाइन में लगे होते हैं, उन सबको वोट डालने के मौका दिया जाता है। समें जितना भी समय लगे, जब तक लाइन का आखिरी व्यक्ति वोट नहीं डाल देता मतदान केंद्र खुला ही रहता है।
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