दीपक जायसवालदीपक जायसवाल

आज डीयू के हिन्दी विभाग के प्रोफेसर दीपक जायसवाल के कविता संग्रह ” बुद्ध और फराओ” के लोकार्पण सह परिचर्चा का आयोजन “रचयिता: साहित्यिक संस्था” के बैनर तले दिल्ली विश्वविद्यालय के कला संकाय में आयोजित किया गया।

इसमें प्रसिद्ध कवि व कथाकार ” उदय प्रकाश”, वरिष्ठ कवि व प्रोफेसर तथा समालोचन पत्रिका के संपादक ‘ अरुण देव’, प्रसिद्ध व सुविख्यात कवयित्री ‘अनामिका’, वाणी प्रकाशन की कार्यकारी निदेशक अदिति माहेश्वरी गोयल, युवा कवि, लेखक व प्रसिद्ध साक्षात्कारकर्ता ‘ डॉ अंजुम शर्मा’ तथा हिंदी विभाग,दिल्ली विश्वविद्यालय की अध्यक्ष एवं साहित्य अकादमी की उपाध्यक्ष प्रो. कुमुद शर्मा की गरिमामयी उपस्थिति रही।

कार्यक्रम का संचालन किया डॉ अनुराग सर ने जो श्यामा प्रसाद मुखर्जी महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं।
डॉ अंजुम ने अपने वक्तव्य में कहा कि इस संग्रह की कविताएं गुमनामी में मर गए लोगों की याद दिलाती हैं। कविता में एक बेचैनी है जो स्मृतियों के सहारे उत्पन्न हुई हैं। कविता में भाषा की स्थानीयता पर जोर दिया। यह भी कहा कि सृष्टि में उल्लास, तन्मयता को कविता में लाना कठिन काम हैं लेकिन संग्रह की कविताएं इस काम को करती नजर आती हैं।

अंत में बताया कि कविता में समय दो तरह से उपस्थित होता है। पहला,जब कवि लिख रहा होता है तो समय रुक जाता है। दूसरा, जब पाठक के पढ़ने के क्रम में समय चलने लगता है। कविता इन दोनों के बीच टहलती है।

प्रो. अरुण देव ने बहुत महत्वपूर्ण बात कही कि इस संग्रह की कविताएं पारिवारिकता की वापसी की कविताएं हैं। संग्रह की एक तिहाई कविताएं परिवार या पास पड़ोस से संबंधित हैं जिनमें नूर मियां भी हैं, उम्मत चाची भी हैं। दादी, नानी, मां, बहन, पिता, सब उपस्थित हैं।

दूसरी बात कही कि परिवार में धीरे धीरे घुस रहे अतिवाद के बरक्स परिवार को संजो लेने की कोशिश हैं, अतिवाद का प्रतिवाद है।
कविता की आंच से परिवार की गर्माहट की याद, उसे बचाने की आस और उसमें आस्था की कविताएं हैं।

उन्होंने कहा, स्मृतियों के धुंधले पड़ गए दौर में कहीं लालटेन जैसी रोशनी की तरह कविताएं हैं। आगे उन्होंने कहा, आधुनिकता के भूकंप से कलाओं के शिल्प ध्वस्त होने लगे हैं, कविताओं से छंद गिरने लगे हैं, ऐसे समय में मेमोरी को reclaim करते हुए बिखरे तिनके चुनते हुए अपने वजूद को गढ़ते हुए कवि ने सोचती हुई आंखों से दुनिया देखने का संकल्प साधा है कवि ने।

उदय प्रकाश ने बोला कि संग्रह की कविताओं में शुरू की पंक्तियां ही कंडेंस विचार के साथ आती हैं फिर उनका विस्तार होता है। इन्होंने कहा जिनका घर होता है वहीं सबसे ज्यादा बेघर होता है और बुद्ध का उदाहरण देते हुए ‘ बुद्ध और फराओ’ की बात की। यह अनासक्ति बहुत जरूरी है। बताया कि इसमें बहुत कुछ है जो दीपक की अपने संबंधों के प्रति कोमल – कृतज्ञ, भावनात्मक संवेदनाओं का प्रमाण है।

अदिति माहेश्वरी गोयल ने बताया कि यह किताब लेखक की trajectory पकड़ने जैसा कविता संग्रह है। वर्तमान पीढी की हड़बड़ाहट के बरक्स दीपक का ठहराव और अध्ययन की दीर्घता नई पीढ़ी के लिए पूरी प्रस्तावना है। कवि की दृष्टि को पोएट फ्लैनियोर बताया जो सामने खड़ा आसपास की सारी घटनाओं को देखता है और चुपचाप दर्ज कर जाता है। अंत में कहा कि अभी तक पूरी तरह निराश न हुए युवा के दस्तक की कविता भी है।

अंत में कुमुद शर्मा ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि इस संग्रह में बुद्ध का बार बार आना, कवि के अतिरिक्त संवेदनशीलता का परिचायक है। सारे चरित्र बहुत प्राणवान होकर उभरे हैं, इतना कि पाठक के भीतर गहरी संवेदनशीलता जगाने की ताकत है। इन कविताओं में उपस्थित परिवार में विरोध, हिंसा, विद्रोह नहीं दिखता, सौंदर्य व प्रेम दिखता है। कवि उस प्रेम में लगातार विश्वास जगाए रखना चाहता है। इन कविताओं में मिथकीय व तात्कालिक स्वरूप में अपने युग की चिंताएं हैं। आगे कहा कि दीपक की कविताएं लाउड नहीं है बल्कि धीमे से अन्तस की पीड़ा से उपजी कविताएं हैं। वंचितों, गरीबों के दुख दर्द को उजागर करती कविताएं हैं। कुल मिलाकर अंधेरे के विरुद्ध उजाले का आवाहन हैं।

अंत में कवि दीपक जायसवाल ने औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम के समाप्ति की घोषणा की। इस दौरान अन्य प्राध्यापकों, शोधार्थियों व विद्यार्थियों की उपस्थिति रही।

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